सफेद दूध के काले कारोबार को रोकने में प्रशासन नाकाम

हरिद्वार। त्यौहारों के मद्दे नजर मिलावट के खिलाफ प्रशासन द्वारा जनपद सहित प्रदेशभर में कार्रवाई जारी है। दूध में मिलावट को लेकर आई भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की रिपोर्ट में पैकेट दूध के 37.7 फीसद और खुले दूध के 47 फीसद सैंपल फेल हो गए थे। दूध व अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम के लिये ऐसा नहीं है कि सरकार सख्ती नहीं कर रही है। मिलावटखोरों पर कार्रवाई भी जारी है। इन सबके बावजूद इस पर लगाम लगाना मुश्किल साबित हो रहा है। त्यौहार के सीजन में ये चुनौती और भी बढ़ गई है। सफेद दूध के काले कारोबार को रोकने के लिये प्रशासन भी नाकाम है। सिंथेटिक दूध की फैक्ट्री, डिटर्जेंट-यूरिया का मावा से आम जनता का भरोसा ही पूरी तरह टूट चुका है। लोगों के पास दुग्ध उत्पादों के विकल्प तो अभी नहीं हैं लेकिन इस तरह के माहौल में वे हर दूध को शक की दृष्टि से देखने लग गए हैं। दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सोडियम पराक्साइड, लाइम स्टोन का पाउडर आदि मिलाने के मामले भी सामने आए हैं। नकली दूध बनाने के मामलों में कास्टिक सोडा, यूरिया, सस्ते डिटर्जेंट मिलाने के मामले भी उजागर हुए हैं। डिटर्जेंट से मिलावटी दूध में झाग बनता है। यही नहीं मिलावट करने वाले कार्रवाई के दौरान यह तर्क देते हैं कि यह केमिकल वे सफाई के लिए रखते हैं। यह कल्पना ही भयावह है कि जिस केमिकल से वे फर्श व परिसर की सफाई की बात कह रहे हैं, वह दूध में मिलाया जाता है। मावा बनाने में इसी तरह के कई खतरनाक केमिकल उपयोग किए जाते हैं। जाहिर है यह सब भारी मुनाफे के लिए किया जा रहा है। दूध और दूध के उत्पाद से लेकर हर तरह के खाद्य पदार्थ में इस तरह की मिलावट की जाती है कि जांच टीम तक हैरत में पड़ जाती है। सेहत से इस तरह का खिलवाड़ भी हो सकता है, विश्वास नहीं होता है।