जम्मू कश्मीर को लेकर भाजपा व आरएसएस ने देश के नागरिकों को राष्ट्रवाद व देशद्रोही का चश्मा पहना दिया। जो लोग कश्मीर में मानवता और संविधान प्रदत्त सुविधाएं देने की बात करें वो देशद्रोही और जो केंद्र सरकार का समर्थन करे वो राष्ट्रवादी। तो क्या अब देश भक्ति का ठेका माडी शर्मा उर्फ मधु शर्मा ने ले लिया है जो कभी समोसे बेचती थी और वो अनधिकृत तौर पर 23 यूरोपीय सांसदों को लेकर कश्मीर पहुंच गयी। क्या मोदी सरकार को जिसे इतना बड़ा जनमत मिला है, देश के आंतरिक मामलों में यूरोपीय सांसदों के सर्टिफिकेट की जरूरत है? क्या कश्मीर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। यदि नही तो फिर मधु शर्मा की अनधिकृत यात्रा को मोदी सरकार ने मंजूरी क्यों दी? जो पढ़े-लिखे हैं वो जानते हैं कि जब भी कोई किसी देश का प्रतिनिधिमंडल कहीं जाता है तो उस देश की सरकार उसे मंजूरी देती है लेकिन इन 23 सांसदों को किसी भी यूरोपीय देश ने कश्मीर के लिए अधिकृत नहीं किया था। यूरोपीय यूनियन ने भी इस दौरे को अधिकृत नहीं बताया है। साफ है कि यह दौरा पूरी तरह से प्रायोजित था। माडी शर्मा ने सांसदों को भेजे अपने निमंत्रण में कहा था कि आने जाने का खर्च भारत स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नॉन अलाइड स्टडीज (आईआईएनएस) उठाएगा। आईआईएनएस एक गैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1980 में की गई थी। हालांकि संगठन की वेबसाइट पर इसके संचालकों या सदस्यों के बारे में जानकारी नहीं है। संगठन के संस्थापक पत्रकार गोविंद नारायण श्रीवास्तव थे। इसके सदस्यों का आज भी कोई अता-पता नहीं है।
हमें यह सोचना होगा कि हम कश्मीर को किस नजरिए से देखें? भारत के एक हिस्से के रूप में। पाकिस्तान समर्थक के रूप में? या आतंकवादियों के गढ़ के रूप में? देश द्रोहियों के रूप में? समूचे 80 लाख लोगों को हम देशद्रोही के रूप में नहीं देख सकते, हम कश्मीर चाहते हैं लेकिन कश्मीरियों को नहीं। जबकि वहां सभी वर्गों और धर्मों के लोग हैं? फिर 370 हटाने या नहीं हटाने पर हमारा नजरिया कश्मीर के प्रति बदलता है क्यों? क्योंकि नेता हमें अपना चश्मा पहना कर हमारे विवेक और बुद्धि को कंट्रोल कर रहे हैं इसलिए?
आखिर मोदी सरकार ने अनधिकृत यूरोपीय संघ को कश्मीर यात्रा की अनुमति क्यों दी?