दुनिया के तानाशाह देशों से भी ज्यादा इंटरनेट बन्द किया जाता है भारत में

दुनिया के तानाशाह देशों से भी अधिक भारत में सबसे ज्यादा इंटरनेट  बंद किए जाते हैं। नागरिकता कानून की आड़ में भारत में इंटरनेट लगातार बाधित हो रहा है और यह काम सरकार के आदेश पर हो रहा है। इंटरनेट सेवाएं क्यों बंद की जाती हैं? कानून व्यवस्था बनाने के लिए या विरोध को कुचलने के लिए। भारत में इस साल अब तक अलग-अलग जगहों पर 100 से अधिक बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है, जिसमें कश्मीर में इंटरनेट पर जारी पाबंदी भी शामिल है। वहां लगभग पांच महीने से इंटरनेट बंद है, जो भारत का सबसे लंबा इंटरनेट बैन है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इंटरनेट पर रोक बहुत तेजी से बढ़ी है। भारत में साल 2014 में सिर्फ छह बार इंटरनेट शटडाउन हुआ, जबकि पिछले साल 134 बार इंटरनेट बंद किया गया। पूरी दुनिया में 196 बार इंटरनेट पर रोक लगी। दूसरे नंबर पर था पाकिस्तान। सिर्फ 12 बार ऐसा करने वाला देश। सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों ने पूरे साल में 10 बार भी इंटरनेट नहीं बंद किया।
 जिस देश का प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया की बात करता हो, उसी देश में सबसे ज्यादा इंटरनेट पर लगाम लगाई जाती है। प्रधानमंत्री मोदी किसी जमाने में अपने नेट सेवी छवि की वजह से चर्चा में रहते थे। उन्हें इंटरनेट का महारथी और ट्विटर किंग के तौर पर जाना जाता था। लेकिन अब वह बात नहीं रही। उनकी छवि धीरे धीरे टूट रही है। जिस समय असम में इंटरनेट बंद रहता है, उस समय मोदी वहां की जनता को संबोधित करते हुए ट्वीट करते हैं। यह सोचे बगैर कि भला वहां के लोग इस ट्वीट को कैसे देखेंगे? संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में एक प्रस्ताव पास किया है, जो इंटरनेट को मानवाधिकार की श्रेणी में शामिल करता है और सरकारों के इंटरनेट पर रोक लगाने को सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन बताता है। हालांकि यह प्रस्ताव नॉन-बाइंडिंग यानी बाध्यकारी नहीं है और भारत आसानी से यह तर्क दे सकता है। लेकिन लोकतांत्रिक देशों के सामने वह कोई तर्क नहीं दे पाएगा, जहां बड़े से बड़े आंदोलनों के बीच भी इंटरनेट पर रोक नहीं लगाई जाती है। इस मामले में भारत का कानून बहुत साफ नहीं है। 
दुनिया भर के रिसर्चरों का दावा है कि इंटरनेट बंद करने से हिंसा या प्रदर्शनों को रोकने में कोई खास कामयाबी नहीं मिलती है। अलबत्ता काम धंधा जरूर चौपट हो जाता है। जम्मू कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स बताता है कि पांच महीनों में डेढ़ अरब डॉलर यानी कोई 100 अरब रुपए का नुकसान झेल चुका है। कई लोगों का कहना है कि सिर्फ ईमेल चेक करने और दूसरे जरूरी ऑनलाइन कामों को निपटाने के लिए उन्हें कश्मीर से जम्मू जाना पड़ता है।
 मोदी सरकार को अपनी कथनी और करनी के बीच की दरार को कम करने की जरूरत है। उनके विरोध की जड़ इंटरनेट नहीं, बल्कि लोगों को विभाजित करने की नीतियां हैं। नागरिकता कानून और प्रस्तावित नागरिकता रजिस्टर काले कानून हैं और उनका पुरजोर विरोध होना चाहिए।