नई दिल्ली(एजेंसी)। सीएए व एनआरसी को लेकर देशभर के लोग संशय में है। लोग अपने पुरखों की पैदाइश का रेकॉर्ड सहेज रहे हैं। रेकॉर्ड के जरिए लोग अपने पिता और नजदीकी रिश्तेदार का जन्म प्रमाण पत्र की सत्यापित नकल ले रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून, नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को लेकर भ्रम और अनचाहे डर ने वेस्ट यूपी में स्थानीय लोगों की मुश्किलें बढ़ा दीं।
बागपत में 50 साल का बुजुर्ग 5वीं का प्रमाणपत्र लेने के लिए दौड़ लगा रहा है, तो मुरादाबाद में जन्मतिथि प्रमाण पत्र के लिए नगर निगम का 135 साल का पुराना रेकॉर्ड खंगाला जा रहा है। नगर निगमों के ऑफिस में भीड़ उमड़ पड़ी है। इनमें मुस्लिम समाज के लोगों की संख्या ज्यादा है। भीड़ से कर्मचारी परेशान हैं।
मेरठ में बर्थ सर्टिफिकेट बनवाने वाले में करीब 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इनमें मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या अधिक है। 60 साल व उससे अधिक आयु के बुजुर्ग भी बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। लेकिन हम ऐक्ट के अनुसार 1969 से पहले पैदा हुए व्यक्ति का जन्म प्रमाणपत्र नहीं बना सकते हैं। गड़बड़ी रोकने के लिए ओरिजिनल पेपर्स के आधार पर ही जन्म प्रमाणपत्र बनाए जा रहे हैं। मुरादाबाद में लोग अपने पुरखों की पैदाइश का रेकॉर्ड सहेज रहे हैं। नगर निगम में 135 साल पुराना रेकॉर्ड खंगाला जा रहा है। इस रेकॉर्ड के जरिए लोग अपने पिता और नजदीकी रिश्तेदार का जन्म प्रमाण पत्र की सत्यापित नकल ले रहे हैं। निगम का रेकॉर्ड पुरखों के जन्म की तारीख और मोहल्ले का नाम दर्शाता है। खासियत यह कि इसमें सन 1885 से जन्म और मृत्यु का रेकॉर्ड दर्ज है। यहां मुगलपुरा निवासी शाहिद पुत्र तैययब ने भी अपना और भाई के नाम जन्म प्रमाणपत्र की नकल के लिए आवेदन किया है। शाहिद की उम्र 30 नवंबर, 1947 और सगे भाई की उम्र 12 नवंबर, 1949 अंकित है।
अमरोहा में बीते दिनों के मुकाबले जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने आ रहे लोगों की संख्या में तीन गुना तक इजाफा हो गया है। हर दिन 40 से 50 लोग प्रमाणपत्र बनवाने आ रहे हैं। पहले यह संख्या 10 से 15 के आसपास थी। अफसरों की मानें तो इस माह केवल छह दिन में मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए 39 और जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए 120 आवेदन अब तक मिल चुके हैं।
38 लाख की आबादी वाले बदायूं जिले में दिसंबर से पिछले महीनों के आंकड़ों पर गौर करें तो महीने में 1500 से 2000 जन्म प्रमाणपत्र महीने भर में बनते थे। मगर अब पिछले एक महीने में संख्या पांच हजार के आसपास पहुंच रही है। इन दिनों गौर किया जाए तो रोजाना करीब 150 से 160 व 166 बन रहे हैं।
कोई घुसपैठिया निवास प्रमाणपत्र न बनवा सके, इसके लिए कर्मचारी खास एहतियात बरत रहे हैं। जिन लोगों के पास किसी तरह का कोई शैक्षिक प्रमाणपत्र नहीं है, उन लोगों का वेरिफिकेशन पुलिस से कराने के बाद ही प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है। इसका भी खास ख्याल रखा जा रहा है कि व्यक्ति जिस कॉलोनी या मोहल्ले का निवास प्रमाणपत्र लगा रहा है, वह कब बसाई गई। जन्म-मृत्यु पंजीयन विभाग के कर्मचारियों की मानें तो प्रमाणपत्र लेने आने वाले लोगों में ज्यादातर लोग सीएए और एनआरसी के भय से ही प्रमाणपत्र बनवा रहे हैं। लोगो में ये भ्रम है कि पता नहीं कब कौन सा प्रमाणपत्र मांग लिया जाए।
अधिकारियों का कहना है कि पुलिस वेरिफिकेशन के बाद भी कई उम्रदराज लोगों के प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहे हैं। वेरिफिकेशन के लिए पुलिसकर्मी आवेदनकर्ता के मुहल्ले में रहने वाले ऐसे लोगों की गवाही लेते हैं जिसकी उम्र आवेदन करने वाले से 18 साल अधिक हो। इसी वजह से आवेदन करने 70 वर्ष से अधिक लोगों में ज्यादातर के प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहे हैं।
गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है किसी भी भारतीय को उसके माता-पिता या दादा-दादी के 1971 से पहले के जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज दिखाकर नागरिकता साबित करने के लिए नहीं कहा जाएगा और न ही उसे नाहक परेशान किया किया जाएगा या मुश्किलों में डाला जाएगा।
सीएए व एनआरसी में संशय को लेकर 135 साल पुराने रेकॉर्ड खंगाल रही हैं लोग