देश की अर्थव्यवस्था का हुआ बंटाधार, निवेशकों का निकला दिवाला

जब कोई भाषणबाज, जुुमलेबाज व्यक्ति देश की गद्दी पर बैठ जाये तो उस देश के नागरिकों और उनके काम धंधों का दिवाला निकलना तय है। ऐसा ही हाल मोदी सरकार के राज में मोदी की गलत आर्थिक नीतियों के कारण हो चुका है। गलत तरीके से नोटबन्दी, जीएसटी जैसी टैक्स प्रणाली को लागू करना, राष्ट्रीय बैंको का एक दूसरे में विलय करना आदि आदि ऐसे अनेक फैसले मोदी सरकार ने लिए है, जिनके कारण कई कंपनियां और बैंक डूब चूके है और कई बैंक और कंपनियां डूबने के मुहाने पर खडी हो चुकी है। अभी हाल ही में मोदी सरकार ने यस बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक को आदेश देकर स्टेट बैंक के खाताधारकों का पैसा यस बैंक में लगवा दिया है लेकिन इसका उल्टा असर स्टेट बैंक के शेयर में देखने को मिल रहा है। सिर्फ 3 दिन में ही स्टेट बैंक का शेयर 25% टूट गया है। इसका मतलब यह हुआ कि विदेशी निवेशक यह बात अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि अब स्टेट बैंक का भी हाल यस बैंक जैसा हो सकता है क्योंकि यदि किसी बीमार को किसी स्वस्थ आदमी के साथ रखा जाये, तो वो स्वस्थ इंसान भी बीमार हो जायेगा। भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशक एक मुश्त बिकवाली पर अमादा हो गये हैं। सिर्फ सोमवार और बृहस्पतिवार को ही शेयर बाजार में निवेशकों के 21लाख करोड रुपये डूब चुके हैं। विदेशी निवेशक हर हाल में भारत के बाजार से निकलना चाहते हैं क्योंकि विदेशी निवेशक यह अच्छी तरह से समझ चुकी है कि अब भारत की आर्थिक स्थिति संभलने वाली नहीं है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कंपनी को भी अब खतरा उत्पन्न हो चुका है। भारत की इकोनोमी पर खतरे के बादल मंडरा चुके हैं, देश की इकोनोमी "डीप रिसेशन " में जाने की तैयारी कर चुकी है। इस गहरी मंदी का संकेत लगातार रूपये की कीमत में डालर के मुकाबले गिरावट के रूप में दिखायी दे रही है। आज 1 डालर के मुकाबले रूपया 74 रूपये 30 पैसे के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है। मोदी जी ने पिछले 6 सालों में देश की अर्थव्यवस्था का ऐसा  बंटाधार करके रख दिया है कि अब इससे उबरने में कम से कम 25 से 30 साल लग जायेंगे। कोरोना वाइरस के कारण अर्थव्यवस्था को जो चोट पहुंचेगी, उसका असर अभी अगले महीनों में दिखायी देगा।