हर्ष सैनी
हरिद्वार। होली के त्योहार को लेकर जिस तरह पूरे देश मे खुशी का माहौल है उसी तर्ज पर हरिद्वार में लोगों ने एक दूसरे को गले लगाकर होली पर्व की शुभकामनाएं दी। होली को लेकर जिले भर के गली मोहल्लों और स्कूलों में अबीर-गुलाल के साथ रंगों की धूम रही। हालांकि कोरोना वायरस के कारण देश के कुछ हिस्सों में इस बार होली को टाल दिया गया है लेकिन कोरोना का कोई प्रभाव हरिद्वार में देखने को नही मिला। यहाँ रंगों का त्योहार होली जिले भर में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों जैसे सलेमपुर, गढ़मीरपुर, महदूद, ब्रह्मपुरी, जैसे अन्य इलाकों में 'रंग बरसै चुनरवाली रंग बरसै, 'होली के दिन दिल मिल जाते हैं,' 'रंगों में रंग खिल जाते हैं' आदि गीतों की धुन पर जगह-जगह युवा थिरकते नजर आए क्योंकि होली का पर्व उत्साह, उल्लास और उमंग के लिए जाना जाता है। वहीँ दूसरी और इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।