देश में न कोरोना नियंत्रित हो पा रहा है न अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है

कोरोना महामारी से निबटने के लिए जब मार्च महीने में देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था तब देश में कोरोना से संक्रमण के करीब 450 मामले थे और महज 18 लोगों की मौत हुई थी। लॉकडाउन लागू होने से 4 दिन पहले जनता कर्फ्यू भी लगाया था और उसी दिन से सब कुछ बंद हो गया था। पहले घोषित किया गया था कि लॉकडाउन 21 दिन का होगा, फिर इसे 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया। 3 मई के बाद भी इसे कुछ मामलों में छूट देने के साथ जारी रखा गया और देश के कई राज्यों में अभी भी यह अलग-अलग स्तर पर जारी है। लेकिन इसके बावजूद देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है। लॉकडाउन के दौरान ताली, थाली, घंटी, शंख आदि बजाने, अंधेरा करके दीया-मोमबत्ती जलाने, आतिशबाजी करने, अस्पतालों पर सेना के विमानों से फूल बरसाने और बैंड बजाने जैसे देशव्यापी कार्यक्रमों को अंजाम देने के बाद सत्ता के शीर्ष से जनता को कोरोना के साथ जीना सीखने और आत्मनिर्भर बनने का मंत्र दे दिया गया है। लोग ईश्वर आराधना कर सकें, इसके लिए धार्मिक स्थल भी खोल देने की इजाजत दे दी गई है। शॉपिंग मॉल, रेस्तरां, क्लब आदि भी धीरे-धीरे खुलते जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण जिस तेजी से फैलता जा रहा है, उससे निबटने में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लाचारी स्पष्ट हो जाने के बाद निजी अस्पतालों को भी लूट की खुली छूट दे दी गई है। मॉस्क, सैनिटाइजर आदि की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बेरोकटोक जारी है। कुल मिलाकर मोदी ने सरकार कोरोना नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता सूची में नीचे धकेल चुकी है। जनता भी अब संक्रमण के बढ़ते मामलों और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को शेयर बाजार के सूचकांक के उतार-चढ़ाव की तरह देखने की अभ्यस्त हो रही है। विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त का खेल देखने की तो वह बहुत पहले से अभ्यस्त है, सो अभी भी देख रही है। देखा जाए तो कोरोना संक्रमण का संकट हमारे यहां केंद्र सरकार की प्राथमिकता में कभी भी शीर्ष पर अपनी जगह बना ही नहीं पाया। भारत में कोरोना संक्रमण का आगमन जनवरी के महीने में ही हो चुका था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कई विशेषज्ञ सरकार को इस बारे में सरकार को आगाह कर रहे थे, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन संकट की गंभीरता को नकारते हुए इस बारे में आगाह करने वालों को नसीहत दे रहे थे कि वे लोगों में अनावश्यक भय न फैलाएं। यही बात सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता भी टीवी चैनलों पर दोहराते राहुल गांधी की खिल्ली उड़ा रहे थे। फरवरी के महीने में ही बड़ी संख्या में विदेशों में रह रहे या विदेश यात्रा पर गए भारतीय स्वदेश आए थे लेकिन हवाई अड्डों पर उनकी समुचित मेडिकल जांच किए बगैर ही उन्हें अपने घर जाने दिया गया। यह लापरवाही काफी गंभीर साबित हुई व देश में कोरोना संक्रमण फैलने का बड़ी वजह बनी। फरवरी के महीने में ही चीन के भयावह परिदृश्य से आतंकित दुनिया के ज्यादातर देशों में जब इस जानलेवा वायरस पर नियंत्रण पाने के लिए निवारक एवं नियंत्रक उपाय और शोध शुरू हो चुके थे तब हमारे देश की सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति का ढोल-नगाड़े के साथ खैरमकदम करने में व्यस्त थी। गुजरात के अहमदाबाद शहर में विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के सम्मान में आयोजित हुआ कार्यक्रम देश में कोरोना फैलने की दूसरी बड़ी वजह बना, क्योंकि इस आयोजन में शामिल होने के लिए करीब 15 हजार अनिवासी भारतीय उस अमेरिका से भारत आए थे, जहां कोरोना संक्रमण फैलना शुरू हो चुका था। मार्च के महीने भी हमारी सरकार के शीर्ष नेतृत्व की प्राथमिकता में कोरोना का संकट नहीं बल्कि एक प्रदेश में विपक्षी दल की सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाना था। यह सब काम निबटाने के बाद ही सरकार को कोरोना संकट याद आया। पहले प्रायोगिक तौर पर 1 दिन का जनता कर्फ्यू और फिर मार्च के आखिरी सप्ताह में बगैर किसी तैयारी के आनन-फानन में लॉकडाउन लागू कर देश को नौकरशाही और पुलिस के हवाले कर दिया गया। देश में कोरोनावायरस का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है और अनलॉक के बाद अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सुधार की जो उम्मीदें बंधी थीं, वे भी खत्म हो रही हैं। हैरानी की बात है कि बिलकुल सामने दिख रही हकीकत को नजरअंदाज करते हुए सरकार की ओर से लगातार प्रचारित किया जा रहा है कि देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। जबकि हकीकत यह है कि कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, न तो कोरोना से निबटने के मोर्चे पर और न ही अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में।